लोगों को सबक दे गया नाटक उधार का पति

The play 'Udhaar Pati' staged at Sangeet Natak Akademi

लखनऊ की अनादि सांस्कृतिक,शैक्षिक एवं सामाजिक संस्था द्वारा दो दिवसीय नाट्य समारोह  में  श्रीमती वनमाला भवालकर  लिखित एवं श्रीमती मुन्नी देवी निर्देशित हास्य नाटक “उधार का पति” का सफल मंचन संस्कृति  मंत्रालय भारत सरकर  के सहयोग से बाल्मीकि रंगशाला में किया गयाl नाटक की कहानी शीला नाम की ऐसी लड़की के इर्द – गिर्द घूमती है,जो अपने दादाजी की मर्जी के खिलाफ शादी करती है।

शीला अपनी सहेली को बतलाती है कि वो बहुत अमीर घर में। उसके एक मुन्ना भी हुआ है l  ये बातें उसकी सहेली उसके दादाजी को बतला देती हैं। दादाजी एक दिन शीला कि फुफेरी बहन रीता के साथ उसके घर आने कि बात करते हैं तब कहानी में नया मोड़ आ जाता है। इस झूठ को छिपाने के लिए  शीला अपनी पड़ोसन से सोफे सेट, क्रॉकरी, टीवी  और टेलीफोन आदि सारा सामान लेकर आपने घर सजा लेती है।

उसके  इस खेल में उसके पति अशोक शामिल नहीं होते हैं। वे घर से जाने लगते हैं तभी उनकी सहेली फ़ोन पर बतलाती है कि वो अपना महाराज नहीं भेज सकती तब शीला महाराज न मिलने के कारण आपने पति से महाराज का पार्ट करने को राजी करती है और उनको समझती है कि तुम्हारी दादाजी से मुलाक़ात भी हो जाएगी और तुमको मेरे पति के रूप में दादाजी के सामने भी नहीं आना पड़ेगा।

दादाजी के आने पर शीला बतलाती है कि अशोक टूर पर गए हैं इस पर दादाजी कहते हैं कि उनको अशोक से बहुत ज़रूरी काम है तुम अशोक को फ़ोन करके बुला लो। शीला अशोक को दादाजी के सामने महाराज के रूप में पेश कर चुकी है इसलिए वो अपनी पड़ोसन के भाई नरेश को अपने पति के रूप में दादाजी के सामने पेश कर देती है। थाने से पुलिस इंस्पेक्टर का फ़ोन आता है की तुम्हारे यहाँ जो महाराज है वो रामसिंह डाकू हैl

  इस पर नरेश अशोक को घर से बहार निकल देता है लेकिन शीला उसे फिर घर में ले आती हैl इत्तेफ़ाक़ से  नरेश वोही है जिससे रीता प्रेम करती है और दादाजी उसी से रीता का रिश्ता पक्का करने जा रहे हैं। रीता जब नरेश को देखती है तो आग बबूला हो जाती है। इंस्पेक्टर और सिपाही डाकू पकड़ने के लिए आते हैं। नाटक में बड़ी असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है। अंततः शीला खुद ही बतलाती है कि महाराज बने अशोक ही मेरे पति हैं।

झूठ आखिर में पकड़ा ही जाता है

दादाजी मुस्करा के कहते हैं कि मुझे सब मालूम था तुम लोग नाटक कर रहे थे तो मैं भी उसमें शामिल हो गया। शीला दादाजी से छमा मांगती है और नाटक का सुखद अंत होता है। मंच पर आशीष सिंह राजपूत, अनिल कुमार, मधु प्रकाश श्रीवास्तव, सूरज गौतम, मनीष पाल, ज्योति सिंह परिहार, करिश्मा गौतम, मोनिका अग्रवाल और सौरभ शुक्ला ने सफल अभिनय किया। मंच परे प्रकाश – तमाल बोस,संगीत – आदित्य मिश्रा, मुख सज्जा – राज किशोर गुप्ता और मंच निर्माण – उमंग फाउंडेशन का नाट्यानुरूप था।

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